Ankahi
Shakeel Sohail
ओह हो हो हो ए ए
कहो तो सही जो है अनकही
कब से रही बेबयान
ऐसा भी नही के जो दिल कहे
वो ना कह सके ज़ुबान
दो लफ्ज़ है तेरे लिए
मेरे लिए दोनो जहाँ
ओह हो हो हो
ओह हो हो हो
ए ए ए ए ए ए
फासलों के दरमियाँ है
रुकी हुई राहें कही
खामोशी की आहतों में
दबी दबी आहें कही
कही ख्वाब आँखों तले अनछुए है
उन्हे चुके ताबीर दो
लकीरें है उलझी हुई मेरे हाथों में
तुम इनको तक़दीर दो
दो लफ्ज़ है तेरे लिए
मेरे लिए दोनो जहाँ
ओह हो हो हो (हो)
ओह हो हो हो
धूप रही ज़िंदगी में
कही कोई साया नही
भूले से भी कोई मुझे
तेरे सिवा पाया नही
मेरे हर तसवउर का मेहवार तुम्ही हो
ना टिशणा मुझे यू करो
ना आँखों ही आँखों से कहती रहो तुम
लबों का सहारा भी लो
दो लफ्ज़ है तेरे लिए (दो लफ्ज़ है तेरे लिए)
मेरे लिए दोनो जहाँ (मेरे लिए दोनो जहाँ)
ओह हो हो हो (हो)
ओह हो हो हो
हो हो हो (हो)
हो हो हो