Chand Kisi Din Poochh Na Baithe
चाँद किसी दिन पुछ ना बैठे हम से दिल की बात
छत पे आके खत लिखती हूँ
छत पे आके खत लिखती हूँ किसको सारी रात
चाँद किसी दिन पुछ ना बैठे हम से दिल की बात
यादो की शबनम से भीगी लगती थी तन्हाई
जब जब लिखा नाम तुम्हारा कलम से खुशबू आयी
काग़ज़ पर होती हो जैसे
काग़ज़ पर होती हो जैसे फूलो की बरसात
चाँद किसी दिन पुछ ना बैठे हम से दिल की बात
शम्मा बुझा देते थे फिर खत लिखते थे
दीवारो के साए से भी डरते रहते थे
जाने क्या क्या सोचा करते
जाने क्या क्या सोचा करते दिल पर रखे हाथ
चाँद किसी दिन पुछ ना बैठे हम से दिल की बात
सूरत भी अब भूल गयी हैं जाने कैसा था
हम को जिस से प्यार हुआ था शायर जैसा था
बंद लिफाफे में आती थी
बंद लिफाफे में आती थी गज़लो की सौगात
चाँद किसी दिन पुछ ना बैठे हम से दिल की बात
छत पे आके खत लिखती हूँ
छत पे आके खत लिखती हूँ किसको सारी रात
चाँद किसी दिन पुछ ना बैठे हम से दिल की बात