Gulzar Speaks [Khwab]

GULZAR

सुबह सुबह एक खवाब की दस्तक पर दरवाजा खोला
देखा सरहद के उस पर से कुछ मेहमान आये हैं
आँखों से मायूस थे सारे चेहरे सुने सुनाए
पाओ धोये हाथ धुलाए आँगन में आसन लगाए
और तंदूर पर मक्के के कुछ मोटे मोटे रोट पकाए
पोटली में मेहमान मेरे पिछले सालो की फसल का गुड़ लाए
आंख खुली तो देखा घर में कोई नहीं था
हाथ लगाकर देखा तो तंदूर अभी भुजा नहीं था
और होंठो पर मीठे गुड़ का ज़ायका अभी चिपका हुआ था
खवाब था शायद खवाब ही होगा
सरहद पर कल रात सुना है चली थी गोली
सरहद पर कल रात सुना है कुछ खवाबो का खून हुआ है

Curiosidades sobre a música Gulzar Speaks [Khwab] de Gulzar

De quem é a composição da música “Gulzar Speaks [Khwab]” de Gulzar?
A música “Gulzar Speaks [Khwab]” de Gulzar foi composta por GULZAR.

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