Pehle Se Kya Likha Thha

GULZAR

पहले से क्या लिखा था एक वीरान जज़ीरे पर
चट्टानों से उतर के जब सूरज गुरुब हो
सुर्ख़-ओ-सुनहरी साहिलों पे तुम मिलो मुझे
पहले से क्या लिखा था एक वीरान जज़ीरे पर
चट्टानों से उतर के जब सूरज गुरुब हो
सुर्ख़-ओ-सुनहरी साहिलों पे तुम मिलो मुझे

और इस तरह फिसल के गिरों तुम मेरे क़रीब
जैसे समंदरों ने अभी ला के फेंका हो
ये पहले से नविश्ता था या इत्तिफ़ाक़ था
सूरज के बाद चाँद निकलने के वक़्फ़े में
तारीख़ी जब के मौत सूँघती है हर तरफ़
तुमको था इंतज़ार की मंज़र से मैं हटूँ
तो ख़ुद को उस गरजते समंदर में फेंक दो

शायद किसी के दर्द विसर्जन को आई थी
और मैं कि इस ख़याल से ठहरा रहा वहीं
तुम इस क़दर नहीं फू बेसहारा सी लगी
ये ख़ौफ़ था कि तुमको समंदर ना खींच ले

उस रात चाँद भी तो बहुत देर से उठा
और तुम किताब-ए-दर्द के ज़ख़्मों को खोल कर
मुझको सुनाती भी रही और फाड़ती रही
पानी पे दूर-दूर तक पुर्जे से बिछ गए

रुख़सत के वक़्त हाथ मिलाते हुए मगर
करवट बदल रहा था कोई दर्द सीने में
आँसू तुम्हारी आँखों में फिर से नविश्ता थे
और इत्तिफ़ाक़ मेरी भी आँखें छलक गईं
पहले से क्या नविश्ता है क्या इत्तिफ़ाक़ है

Curiosidades sobre a música Pehle Se Kya Likha Thha de Gulzar

De quem é a composição da música “Pehle Se Kya Likha Thha” de Gulzar?
A música “Pehle Se Kya Likha Thha” de Gulzar foi composta por GULZAR.

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