Prayag Ki Oor Chale Raghunatha
Jayachandran
रैन कटी आकाश के नीचे
सिया अनुज अरु मित्र के साथा
प्रात समय उठ तीरथ राज
प्रयाग की ओर चले रघुनाथा
प्रयाग की ओर चले रघुनाथा
को कही सकहि प्रयाग प्रभाऊ
कलुष कुंज कुंजर मृग राऊ
अस तीरथ पथी देखी सुहावा
सुख सागर रघुवर सुख पावा
सुख सागर रघुवर सुख पावा
गंगा जमुना सरस्वती तट
राम लखन संग सिय सुख देनी
आज त्रिवेणी से मिलने ज्यों
आई हो एक और त्रिवेणी
आयी हो एक और त्रिवेणी