Kabhi Kabhi Koi Svaarth Hriday Mein
K. S. Chithra, M. G. Sreekumar
कभी कभी कोई स्वार्थ हृदय मे ऐसी अगन लगाए
धर्म न्याय कर्तव्य उचित उनुचित सब कुछ खोजाये
दुनिया की कोई भी नारी सौतन सह नाआ पाए
इसी दाह ने कैकेयी के भी स्नेह और ज्ञान जलाए
इसी दाह ने कैकेयी के भी स्नेह और ज्ञान जलाए