Tujhse Rukhsat Ki
तुझ से रुख़सत की वो शाम-ए-अश्क़-अफ़्शां हाए हाए
तुझ से रुख़सत की वो शाम-ए-अश्क़-अफ़्शां हाए हाए
वो उदासी वो फ़िज़ा-ए-गिरिया सामां हाए हाए
यां कफ़-ए-पा चूम लेने की भिंची सी आरज़ू
वां बगल-गीरी का शरमाया सा अरमां हाए हाए
वो मेरे होंठों पे कुछ कहने की हसरत वाये शौक़
वो तेरी आँखों में कुछ सुनने का अरमां हाए हाए
तुझ से रुख़सत की वो शाम-ए-अश्क़-अफ़्शां हाए हाए