Sab Kahan Kuchhh Lala-O-Gul Mein

Mirza Ghalib

सब कहाँ कुछ लाला-ओ-गुल में नुमायाँ हो गईं
ख़ाक में क्या सूरतें होंगी, के पिन्हाँ हो गईं
रंजिसे ख़ूगर हुआ इन्सां तो मिट जाता है रंज
मुश्किलें मुझ पर पड़ीं इतनी, के आसाँ हो गईं

मैं चमन में क्या गया, गोया दबिस्तां खुल गया
बुलबुलें सुन कर मेरे नाले, ग़ज़लखाँ हो गईं

यूं ही गर रोता रहा ग़ालिब, तो ए अहल-ए-जहाँ
देखना इन बस्तियों को तुम, के वीराँ हो गईं
म्म हम्म हम्म हम्म हम्म हम्म हम्म हम्म
हम्म हम्म हम्म हम्म

जाड़ा पड़ रहा है हमारे पास शराब आज की और है
कल से रात को नेरी अंगीठी पर गुजारा है
बोतल, Glass, मौकूफ

Curiosidades sobre a música Sab Kahan Kuchhh Lala-O-Gul Mein de Jagjit Singh

De quem é a composição da música “Sab Kahan Kuchhh Lala-O-Gul Mein” de Jagjit Singh?
A música “Sab Kahan Kuchhh Lala-O-Gul Mein” de Jagjit Singh foi composta por Mirza Ghalib.

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