Kahe Ko Byahi Videsh Re Babul
आ आ आ आ आ आ
आ आ आ आ आ आ
काहे को ब्याही बिदेश
काहे को ब्याही बिदेश रे बाबुल
काहे को ब्याही बिदेश
ऐसी न थी मेरे मायके गलिया
ऐसी न थी
ऐसी न थी मेरे मायके गलिया
जैसा पिया जी का देश रे बाबुल
काहे को बियाही बिदेश
काहे को बियाही बिदेश रे बाबुल
काहे को बियाही बिदेश
पढ़ गए कोमल पैरो में छाले ओ ओ
पढ़ गए कोमल पैरो में छाले
लग गए होंठो पे चुप के ताले
लाखजो अनजाने वाले एक के हाथ
भेजा न मेरे भैया ने सन्देश रे बाबुल
काहे को बियाही बिदेश
काहे को बियाही बिदेश रे बाबुल
काहे को बियाही बिदेश
लिख लिख पहाडी कितनी पत्तिया
लिख लिख पहाडी कितनी पत्तिया
लिख न पाउ जीति बतिया
छोटे दिन और लम्बी रतिया
याद करू सरे महले दो महले
लगी पिअय के देश रे बाबुल
काहे को बियाही बिदेश
काहे को बियाही बिदेश रे बाबुल
काहे को बियाही बिदेश
जीवन सपना निकला जूठा
ओ जीवन सपना निकला जूठा
मेरा मन मुझसे भी रूठा
मुख गयी सं में दर्पण टुटा
अपना आप न पहचानू
बदला जी मैंने ऐसा भेष रे बाबुल
काहे को बियाही बिदेश
काहे को बियाही बिदेश
रे बाबुल काहे को बियाही बिदेश