Shiv Amrit Bhakti
शिव भक्ति की आस है, मन में शिव का वास
मेरे घर के कण कण में, शिव का सदा निवास
चंद्र मिटे सूरज मिटे, मिटे सकल संसार
मिटे न शिव का नाम कभी शिव महिमा अपरंपार
आदि मध्य और अंत नहीं, निराकार ओमकार
आदिदेव शिव परमेश्वर ही सब वेदों का सार
महादेव निर्माण करे, वे ही पालनहार
प्रलय काल में अंत समय, शिव ही करें संहार
सब समुद्र स्याही बने, धरती कागज होय
लिखे स्वयं ही सरस्वती शिव महिमा पूरी न होय
जन्म मरण से मुक्ति मिले, नाम जपे जो शिव का
कोटि यज्ञ का फल मिले, कष्ट मिटे जीवन का
शिव लिंग पर अर्पण करो, बिल्व पत्र जल धार
नमः शिवाय का जाप करो, हो जाए भव पार
भक्ति का दीपक धरूं, श्रद्धा की हो बाती
मन मंदिर में आओ प्रभु, मेरे जीवनसाथी
हाथों में डमरू है बाजे, तीन नेत्र बाघाम्बर साजे
गले रहे मुंडो की माला, शिव का ऐसा रूप निराला
कानों में बिच्छू के कुंडल, कर त्रिशूल और पाश कमंडल
सर्प गले में सर्प शीश पर, शीश चंद्र चमके है सुंदर
सिर से बहती गंगा सुंदर, भस्म लपेटे अंग अंग पर
भूत संग में नंदी भृंगी, प्रेत पिशाच हैं जिनके संगी
शिव की पत्नी देवी पार्वती, पुत्र हैं कार्तिक और गणपति
शिव परिवार की महिमा न्यारी, हाथ जोड़ती दुनिया सारी
ऐसा अद्भुत रूप है, लीला अपरम्पार
शिव की भक्ति करने से हो जीवन का उद्धार
ज्योर्तिलिंग काशी विश्वेश्वर, गंगा मैया बहे जहा पर
ओंकारेश्वर और ममलेश्वर, कल कल बहे नर्मदा सुंदर
हिम शिखरों में रहने वाले, केदारेश्वर नाथ निराले
महाकाल शिव उज्जयिनी में, कुंभ लगे बारह वर्षों में
श्रीशैलम पर्वत पर सुंदर, मल्लिकार्जुन का है मंदिर
सहयाद्रि पर्वत के ऊपर, भीमाशंकर देते हैं वर
नागेश्वर नागों के स्वामी, परब्रह्म शिव अंतर्यामी
रावण ने नौ शीश चढ़ाय, वैद्यनाथ धरती पर आए
नासिक में त्रयंबकेश विराजे, ब्रह्म गिरी पर्वत पर साजे
सोमनाथ की महिमा न्यारी, चंद्रेश्वर भोले त्रिपुरारी
सागर तट पर हैं रामेश्वर, रामचंद्र के शिव ही ईश्वर
घृष्णेश्वर शिव कृपा हैं करते, जीवनदान सभी को देते
बारह ज्योतिर्लिंग का, नाम जपे जो कोय
सात जन्म के पाप मिटे, सिद्ध काम सब होय