Khilta Hua Gulab

OSMAN MIR, VIJYENDRA SINGH PARVAZ

खिलता हुआ गुलाब महकती काली है तू
फैली हुई ज़मीन पे हसी चाँदनी है तू
खिलता हुआ गुलान महकती काली है तू
फैली हुई ज़मीन पे हसी चाँदनी है तू

आईने कर रहे है तेरी नाज़ुकी का ज़िकरा
आईने कर रहे है तेरी नाज़ुकी का ज़िकरा
आँखों का नूवर है कभी लब की हसी है तू
आँखों का नूवर है कभी लब की हसी है तू
फैली हुई ज़मीन पे हसी चाँदनी है तू
खिलता हुआ गुलाब

जब तुझको देखता हूँ तो ये सोचता हूँ मैं
जब तुझको देखता हूँ तो ये सोचता हूँ मैं
दिल का सुकून रूह की पाकीज़गी है तू
दिल का सुकून रूह की पाकीज़गी है तू
फैली हुई ज़मीन पे हसी चाँदनी है तू
खिलता हुआ गुलाब

परवाज़ क्या बयान करूँ हुस्न को तेरे
परवाज़ क्या बयान करूँ हुस्न को तेरे
बस इतना जानता हूँ मेरी शायरी है तू
बस इतना जानता हूँ मेरी शायरी है तू
फैली हुई ज़मीन पे हसी चाँदनी है तू
खिलता हुआ गुलाब महकती काली है तू
फैली हुई ज़मीन पे हसी चाँदनी है तू
हसी चाँदनी है तू..हसी चाँदनी है तू

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