Roko Na Mujhe
Sifar
कभी कभी में यह सोचता हूँ
क्यूँ में खुद से खफा हूँ
आगे बढ कर जा पोहचू में
उस पार मेरा गाँव
हर कोई टोकता है
बदने से रोकता है मुझे
ठहरे ठहरे कदम हैं
कैसे ढूंडू में अपनी राहे
ना ना ना ना
रोको ना रोको ना मुझे
ना ना ना ना
छू दो आसमान मुझे
भूलना है
जो भी तुमने सिखाया मुझे
ना ना ना ना
रोको ना रोको ना मुझे
ख़ामोशी में चीखता हूँ
टुकड़ा टुकड़ा बटा हूँ
आएने के दायरों में
सिमटा सा क्यूँ में खड़ा हूँ
कहीं पीछे भूल आया
अपना एक छोटा साया
मुझसे वो पूछता है
उसे खो के क्या मैंने पाया
ना ना ना ना
रोको ना रोको ना मुझे
ना ना ना ना
छू दो आसमान मुझे
भूलना है
जो भी तुमने सिखाया मुझे
ना ना ना ना
रोको ना रोको ना मुझे