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AMIT YADAV

उसने ये कहा
क्यूँ है तू खफा
तेरी ज़िन्दगी में है वो पल आना भी बचा
क्यूँ खो कर यकीन
अपनी आवाज़ में हे
तेरा आसमान है, तेरा ही तो है जहाँ
मेरे लेकिन कुछ दिन हैं ऐसे
आज हूँ पर कल ना जाने कहाँ
मैं जाऊँगा
एक दिन मगर मैं जाऊँगा
मैं जाऊँगा
एक दिन मगर मैं जाऊँगा
उसने ये कहा
तू है आज़ाद फिर
तेरी हर ख़ुशी में है तेरी जिद तेरी मंजिल
गुम होकर यु कहीं
इस झूठे गाँव में हे
ना खोना तू यकीन तेरे संग है मेरा ये दिल
मेरे लेकिन कुछ दिन हैं ऐसे
आज हूँ पर कल ना जाने कहाँ

मैं जाऊँगा
एक दिन मगर मैं जाऊँगा
मैं जाऊँगा
एक दिन मगर मैं जाऊँगा

मुझसे यूँ क्यूँ खफा है तू
क्यूँ ये दूरी, क्यूँ जुदा है तू
खोकर अपने दिल की ये आवाजें
अपनी मंजिल से फना है तू
मैं चाहूँगा तुझको मगर
मैं जाऊँगा
मैं जाऊँगा
एक दिन मगर मैं जाऊँगा
मैं जाऊँगा
एक दिन मगर मैं जाऊँगा
मैं जाऊँगा
एक दिन मगर मैं जाऊँगा

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