Mashaalein
Puneet Sharma
उबलता है अंधेरा शहर एक च्चला है
रात की जैल पे चाँद का ताला है
क़ैदियों के कंधो पे सपनों की ईंट है
चेहरों पे चेहरे नही सिर्फ़ पीठ है
सवेरे का नक्शा भी आँखों मे दफ़्न है
उजाले की क़बरा पे चमचमता कफ्न है
आँखें मूंडे हुए खामोश हैं मशाले मशाले
गहरी सी नींद मे बेहोश हैं मशाले मशाले
आँखें मूंडे हुए खामोश हैं मशाले मशाले
गहरी सी नींद मे बेहोश हैं मशाले मशाले
गहरे नशे मे सोई है ये सर्द बस्ती
बाशिंदे सजदों मे करते हैं मुर्दा परस्ती
खोजें लहू की खुश्बू खाली ज़ार्ड आँखें
रेतों की क़ब्रों मे डूबा लेके नू कश्ती