Maati ka Palang

NEERAJ RAJAWAT, SAMIRA KOPPIKAR

माटी के ख्वाब सारे माटी के अंग
पानी के संग बहे जीवन के रंग
माया है जीत सारी माया है ये जंग
आखरी मंज़िल सभी की
माटी का पलंग, माटी का पलंग
माटी का पलंग, माटी का पलंग

सौ सौ के पाले थे समय की पटरी से उतार जाए
नब्ज़ो के गलियारे टुकड़ो मे बिखरे सारे
माटी का मकान तो है कच्चा सा
धूल मे मिलेगा कतरा कतरा
इत्तराय काहे राही तू कैसा घमंड
रीते काया ढलती छाया ऐसा नियम
जाते हुई थी बोली कटी पतंग
आखरी मंज़िल सभी की
माटी का पलंग, माटी का पलंग
माटी का पलंग, माटी का पलंग
माटी का पलंग, माटी का पलंग

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