Kahe Do Is Raat Se

Noor Dewasi

कह दो इस रात से के रुक जाये
कह दो इस रात से के रुक जाये
दर्द-ए-दिल मिन्नतों से सोया है
कह दो इस रात से के रुक जाये
दर्द-ए-दिल मिन्नतों से सोया है
ये वोही दर्द है जिसे लेकर
लैला तड़पी थी मजनू रोया है
कह दो इस रात से के रुक जाये
दर्द-ए-दिल मिन्नतों से सोया है

मैं भी इस दर्द की पुजारन हूँ
ये न मिलता तो कब की मर जाती
मैं भी इस दर्द की पुजारन हूँ
ये न मिलता तो कब की मर जाती
इसके एक एक हसीन मोती को
रात दिन पलकों में पिरोया है
ये वोही दर्द है जिसे लेकर
लैला तड़पी थी मजनू रोया है
कह दो इस रात से के रुक जाये
दर्द-ए-दिल मिन्नतों से सोया है

ये वोही दर्द है जिसे ग़ालिब
जज़्ब करते थे अपनी ग़ज़लों में
ये वोही दर्द है जिसे ग़ालिब
जज़्ब करते थे अपनी ग़ज़लों में
ये वोही दर्द है जिसे ग़ालिब
जज़्ब करते थे अपनी ग़ज़लों में
मीर ने जबसे इसको अपनाया
दामन-ए-ज़ीस्त को भिगोया है
ये वोही दर्द है जिसे लेकर
लैला तड़पी थी मजनू रोया है
कह दो इस रात से के रुक जाये
दर्द-ए-दिल मिन्नतों से सोया है
कह दो इस रात से के रुक जाये

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