Drishyam [Vijay Prakash's Version]
सच लगता है झूठ जैसा है यह तेरी आँखों का करम
दृश्यम
जो यह देखती है सच है वो या है सच होने का भरम
दृश्यम
जितनी भी सुनवाइयाँ झूठ की हो सौ दुहैईयाँ
देके रहता है सच की गवाहियाँ
दृश्यम दृश्यम
शब्दों पे नही
दृश्यों पे धयान दो
क्यूँ-की शब्दों में झूठ
छुपने की जगह ढूँढ ही लेता है
लेकिन दृश्य
दृश्य कभी झूठ नही बोलते
इसलिए सवाल यह नही है के
आपके आँखों के सामने क्या है
सवाल यह है के आप देख क्या रहे हो
झूठ में तो काई राज़ छुपते हैं खा के झूठी सी कसम
दृश्यम दृश्यम
राज़ रह के भी रह नही पता है यह सच का धरम
दृश्यम दृश्यम
झूठी लड़के लड़ाइयाँ झूठ देता है सफाइयाँ
लाके रहता है झूठ की तबाहियाँ
दृश्यम दृश्यम
दृश्यम दृश्यम
हो हो हो हो हो हो हो हो (हो हो हो हो)
एक झूठ को छुपाने में तो लाखों झूठ पद गये कम
दृश्यम दृश्यम
एक सच काफ़ी तोड़ने के लिए हर झूठ का अहम
दृश्यम दृश्यम
झूठ के कारावास में दूं तोड़ने से पहले
देना चाहता है सच को रिहाइयाँ
दृश्यम दृश्यम
दृश्यम दृश्यम
आ आ आ आ आ आ आ आ आ (आ आ आ)