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Paradox

कहते लोग सब कलयुग का दोष है
हर कोई यहाँ एहसान फारमोश है
मेरा सवाल कहीं आप भी तो ऐसे नही
ऊ ई'म सॉरी लेकिन आप भी खामोश हैं
मेरा मकसद किसी को कहना बुरा नही
लेकिन आप सही फिर मानना क्यूँ बुरा भाई
अभी तो हुए बस कुच्छ ही क्षान्न हैं
यह तो शुरूवात गाना हुआ अभी पूरा नही
जाने क्यूँ आजकल अलग ही सनक सूझे
शकल से लगे आईना ना पसंद तुम्हे
क्यूंकी यह गीत संग बीट के लिखा हैं तुमपे
पहले दोष देने वालों पे, बाकी बचे हम दूजे
आज नो लिमिट्स मुझे खुलके सुनाने दो
क्यूँ यह ज़माना ही दोष देता हैं ज़माने को
क्यूँ यह लोग ही कहते की लोग क्या कहेंगे
इन्हे बोलो बातों की बत्ती बनाओ हूमें जाने दो
मुझे गाने दो खुदा भी मेरा सुनेगा
सच सुनाने दो ना दर मुझे लोगों का
मिली शक्ति दिल करम ही चुनेगा
लोग अच्छा बुरा बोलेंगे पड़े फराक ना दोनो का
इतनी शक्ति देना मुझे दाता तू
नेक रहे इरादा इश्स-से माँगूँ ज़्यादा क्यूँ
रोज़ मैं सोचूँ ऐसा कर पता यून की
लोगों के रख गम खुद खुश गेया सकूँ
बातुन खुशियाँ बातुन प्यार मैं
तो फिर कैसे कमज़ोर होगा विश्वास यह
ना जाता मैं भूल सटीक यह आसूल
तो फिर भूल के भी भूल कैसे करूँ इश्स रास्तें में
वास्तव में अब इंसानियत पे ना भरोसा
धर्मों का जाल यहाँ जैसे सबको हैं दबोचा
मुझे तो ना पल्ले पड़ती बातें सारी
वो कहते खा ना कसम पर मैं व्रत पे जैसे रखा रोज़ा
होता वाद विवाद आजकल बिना बात
मरके होना अमर ना की बॅन जीना लाश
मेरा हिफोप ही राम मैं जैसे पवन पुत्रा
जप करूँ सुबह शाम देखलो सीना काट
एक ही लक्ष याद अओन जाने के बाद भी
हो सबका भला ख्वाइश यह आख़िरी
मुट्ठी बंद थी दुनिया में आते वक़्त तो
हो कैसे यकीन लकीरों पे समझ आए बात नही
हो सकता हैं जो सच हो दुनिया के नज़रिए से
वो हो झूट और तुम अंश हो किसी ज़रिए के
यह दुनिया कौन चलाए किसी को नही मालूम क्यूंकी
जिसको तुम जानो वो हैं पत्थर जिसके घर सरिय के
यह तो बातें थी सारी आख़िर में मैं भी तो हूँ इंसान
जीना भ्रम में बढ़ावा देना मिथ्या को बिन जान
बस यही काम मेरा मेरा पाठ ना हैं सत्या का
अहम ब्रह्मासमी मैं विष्णु मैं ही शिव मैं हूँ इंसान

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