Kabhi Sukun Ko
IQBAL, DANISH BAREILVI
आ आ आ आ आ आ आ
आ आ आ आ आ आ आ
कभी सुकूँ को कभी ग़मगुसार को रोए
कभी सुकूँ को कभी ग़मगुसार को रोए
तमाम उम्र दिल-ए-बेक़रार को रोए
तुम्हारी याद भी जाने लगी दबे पाँव
आ आ आ आ आ आ आ
हम इस तरह से ग़म-ए-रोज़गार को रोए
किसी तरह से मुहब्बत को ज़िंदगी ना मिली
सहर हुई तो शब-ए-इंतज़ार को रोए
किसी की याद में हम रोए इस तरह दानिशी
आ आ आ आ आ आ आ
कि जैसे फूल मैं चमन बहार को रोए
कि जैसे फूल मैं चमन बहार को रोए