Savaal

Maya

मैं दिन से दिन भर पूछूँगा
क्यूँ रात से मिली
मिलकर भी मूह क्यूँ मॉड़े
तेरी बात ना बनी
एक दिन पूछूँगा रब से
दिल की कैसी ये लगी
मैं साज़िशों के घेरे में
ये आग यूँ लगी
तू आख़िर बोल
कुछ तो बोल
झूठा ठहराती है फसाती है
कोई प्यार ना करे
तू आख़िर बोल
कुछ तो बोल
बातें क्यूँ बनती है नचती है
इज़हार क्या करें
सूरज से पूछूँगा रे
क्यूँ डूबता तू ही
मौसम से भी पूछूँगा
क्यूँ है रूठ ता तू ही
दर्डा से इश्स दिल का रिश्ता
क्यूँ छ्छूट ता नही
तारे से भी पूछूँगा
क्यूँ है टूट ता तू ही
तू आख़िर बोल
कुछ तो बोल
करती मनमानी है
जवानी है
यो नास की जड़ी
तू आख़िर बोल
कुछ तो बोल
आती जाती है सुहाटी है
एक आँख भी नही
बताना प्यार में मेरे
दिखी मासूम कमी थी
बिना दीदार के तेरे
मेरी तो साँस थमी थी
सवालों के घेरे में
तू क्यूँ चुप छाप खड़ी थी,
पर अब तक़दीर में च्चाया
माना ताब्ब धूप घनी थी
हेस्ट खिलते नज़रों को
नज़रें ऐसी लगी
इश्स दिल की क्या ग़लती थी
आँखें आँखों से लदी
चिंगारी सी बारिश की बूँदें
रात भर चली
मुड़कर पीछे देखा तुझको
ये साँस यूँ जली
तू आख़िर बोल
कुछ तो बोल
करती मनमानी है
जवानी है
यो नास की जड़ी
तू आख़िर बोल
कुछ तो बोल
आती जाती है सुहाटी है
एक आँख भी नही

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