Apni Kaho Kuchh
अपनी कहो कुछ मेरी सुनो
क्या दिल का लगाना भूल गए क्या भूल गए
रोने की आदत ऐसी पड़ी
हँसने का तराना भूल गए हाँ भूल गए
काली रातें बीत गईं
फिर चाँदनी रातें आई हैं
फिर चाँदनी रातें आई हैं
दिल में नहीं उजियाला मेरे
ग़म की घटाएं छाई हैं
ग़म की घटाएं छाई हैं
प्रीत के वादे याद करो
क्या प्रीत निभाना भूल गए क्या भूल गए
भूला हुआ है राह मुसाफ़िर
बिछड़ा हुआ है मंज़िल से
बिछड़ा हुआ है मंज़िल से
खोए हुए रस्ते का पता
तुम पूछ लो ख़ुद अपने दिल से
तुम पूछ लो ख़ुद अपने दिल से
चलते चलते ऐसे थके
मंज़िल का ठिकाना भूल गए हाँ भूल गए
नज़्दीक बढ़ा नज़्दीक बढ़ा
ए मौसम नहीं फिर आने का
ए मौसम नहीं फिर आने का
नज़्दीक शमा के जाने से
क्या हाल हुआ पर्वाने का
क्या हाल हुआ पर्वाने का
मिटने का फ़साना याद रहा
जलने का फ़साना भूल गए क्या भूल गए
अपनी कहो कुछ मेरी सुनो
क्या दिल का लगाना भूल गए क्या भूल गए