Srupnakha Vyakul Bhayi Arun
Arun Mozhi, Deepika, P. Unnikrishnan, S. N. Surendar
सूर्पनखा व्याकुल भई खों बैठी चित चैन
राम रूप को देख के चका चौंध भए नैन
काम-आतुर लौ लुप नारी
भई अंध गयी मत मारी
भई अंध गयी मत मारी
काम-आतुर लौ लुप नारी
फैलाने लगी निज माया
इच्छा प्रीत रूप बनाया
इच्छा प्रीत रूप बनाया
फैलाने लगी निज माया
अम्बर से भू पर गिरी लगा काम का बाण
झुलस उठी काम आग्नि मे बस मे रहे न प्राण