Har Ghadi Shukriya Zindagi

Ravi Chopra

हर घडी एक नया इन्तहा ज़िन्दगी
चाहती है तू क्या सच बता ज़िन्दगी
हो गयी बेवजा क्यों खफा ज़िन्दगी
चाहती है तू क्या सच बता ज़िन्दगी

दिल में सौ उलझने है परेशां सर
हम समझ न सके है ये कैसा शहर
रात को भी यहाँ रात सोती नहीं
दिन निकलता है पर सुबह होती नहीं
हमको ले आई तू ये कहा ज़िन्दगी
चाहती है तू क्या सच बता ज़िन्दगी
हर घडी एक नया इन्तहा ज़िन्दगी
चाहती है तू क्या सच बता ज़िन्दगी

हमने पाया है क्या और क्या खो दिया
सोचने आज बैठे तोह दिल रो दिया
रहा जिन जुगनु ने दिखायी हमे
या तू जनो में उनपे न आयी हमे
हम से क्यों हो गयी ये खता ज़िन्दगी
चाहती है तू क्या सच बता ज़िन्दगी
हर घडी एक नया इन्तहा ज़िन्दगी
चाहती है तू क्या सच बता ज़िन्दगी

हौस्लो ने तेरे छू लिया आस्मा
मुठियो मे तेरी अब है सारा जहा
धूप मे मुश्किलो की निखारा मुझे
ज़िंदगी तूने ऐसे सावरा मुझे
जो किया तूने अच्छा किया ज़िंदगी
शुक्रिया शुक्रिया शुक्रिया ज़िंदगी
शुक्रिया ज़िंदगी शुक्रिया ज़िंदगी

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